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हिंदू धर्म के प्रमुख इष्ट देव भगवान है श्री कृष्ण जी प्रभु प्रेमियों के दिलों में श्री कृष्ण जी का विशेष स्थान है विष्णु के अवतार कृष्ण जी श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्री को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए पृथ्वी पर अवतरित हुए थे। इसलिए इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है।पूरे भारतवर्ष में 23 अगस्त को कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाएगी। कोई कृष्ण को लल्ला, माखन चोर, लड्डू गोपाल, कान्हा, सांवलिया तो कोई कृष्णा कहकर प्रेम से पुकारते हैं । जन्माष्टमी पर श्री कृष्ण की जन्म नगरी मथुरा भक्ति के रंगों में जीवंत हो जाती है। वेद के अनुसार जन्माष्टमी में स्त्री पुरुष बारह बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती है और श्री कृष्ण को झूला झुलाया जाता है।एक मान्यता के अनुसार आधी रात के समय रोहिणी में कृष्णाष्टमी हो तो उसमें कृष्ण का अर्चन और पूजन करने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है। लेकिन कृष्ण जी खुद अपने कर्मों के पाप प्रभाव को नहीं काट सके तो भक्तों के कैसे काटेंगे। जिस समय गीता जी का ज्ञान बोला जा रहा था, उससे पहले मैं तो 18 पुराण थे, ने 11 उपनिषद और ना ही छह शास्त्र थे।उस समय केवल चारों वेद शास्त्र के रूप में प्रमाणित थे और उन्हीं पवित्र चारों वेदों का सारांश पवित्र गीता जी में वर्णित है।
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 6 श्लोक 16मैं व्रत /उपवास करने को मना किया गया है,की हे अर्जुन! यह योग (भक्ति) न तो अधिक खाने वाले की और न ही बिल्कुल खाने वाले की अर्थात यह न ही व्रत रखने वाले की,न ही अधिक सोने वाले की ने ही अधिक जागने वाले की सफल होती है। इस श्लोक में व्रत रखना पूर्ण रूप से मना है। जो ऐसा कर रहे हैं वह शास्त्र विरुद्ध साधना कर रहे।पूर्ण परमात्मा तो अविनाशी है जिनका कभी न तो जन्म होता है न मृत्यु होती है । वह है अविनाशी परमात्मा कबीर साहिब जी अपने सद ग्रंथ प्रमाणित कर रहे हैं। अधिक जानकारी के लिए 7:30 पीएम साधना चैनल पर सत्संग जरूर देखें